मशरूम की खेती: प्रारंभ से बाजार तक की संपूर्ण जानकारी
1. मशरूम खेती की आवश्यकता और महत्व
Explanation or content related to the necessity and importance of mushroom
farming.
2. विभिन्न प्रकार के मशरूम: विस्तार से जानें
Explanation or content about different types of mushrooms in detail.
3. मशरूम उत्पादन की प्रमुख चुनौतियाँ और उनके समाधान
Explanation or content about the major challenges in mushroom production
and their solutions.
4. उच्च उत्पादन के लिए सही जलवायु और माहौल
Explanation or content about the appropriate climate and environment for
high production.
5. मशरूम उत्पादन की व्यवस्था और प्रक्रिया
Explanation or content about the organization and process of mushroom
production.
मशरूम की खेती: प्रारंभ से बाजार तक की संपूर्ण जानकारी
मशरूम की खेती की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसकी विभिन्न किस्मों की खेती
पूरे साल की जा सकती है, जिससे निरंतर आय संभव हो जाती है।
पिछले कुछ सालों में, किसानों का रुचि मशरूम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ी है।
मशरूम की खेती से अच्छी आमदनी हो सकती है, बशर्ते कुछ महत्वपूर्ण बातों का
ध्यान रखा जाए। बाजार में मशरूम का अच्छा मूल्य मिलता है, जो इसे लाभदायक
बनाता है।
क्यों बढ़ रही है मशरूम की खेती की लोकप्रियता?
विभिन्न राज्यों में किसान मशरूम की खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं। इसकी
खेती कम जगह, कम समय और कम लागत में संभव है, जबकि मुनाफा लागत से कई गुना
अधिक होता है। मशरूम की खेती के लिए किसान किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या
कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं।
भारत में मशरूम की खेती का इतिहास
विश्व में मशरूम की खेती हजारों वर्षों से की जा रही है, जबकि भारत में इसका
उत्पादन लगभग तीन दशक पुराना है। पिछले 10-12 वर्षों में भारत में मशरूम के
उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी गई है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब,
हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे
राज्यों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है।
मशरूम के स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
मशरूम का उपयोग भारत में भोजन और औषधि दोनों के रूप में किया जाता है। इसमें
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण और विटामिन जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व
होते हैं। इसे खुम्भ, खुम्भी, भमोड़ी और गुच्छी आदि नामों से जाना जाता है।
इसके अलावा, मशरूम से पापड़, जिम के सप्लीमेंट्स, अचार, बिस्किट, टोस्ट,
कूकीज, नूडल्स, जैम, सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली आदि उत्पाद भी
बनाए जाते हैं, जो ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।
मशरूम की खेती के प्रशिक्षण और समर्थन
मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय और
प्रशिक्षण संस्थान पूरे वर्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इन
कार्यक्रमों में मशरूम की खेती की विधि, बीज उत्पादन तकनीक, मास्टर ट्रेनर
प्रशिक्षण, उत्पादन और प्रसंस्करण आदि विषय शामिल होते हैं। महिलाओं को भी
मशरूम की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, और राज्य सरकारें किसानों
को 50% तक की सब्सिडी भी प्रदान कर रही हैं।
भारत में उगाई जाने वाली मशरूम की किस्में
विश्व में लगभग 10,000 प्रजातियों के खाद्य मशरूम पाए जाते हैं, जिनमें से 70
प्रजातियां खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। भारतीय वातावरण में मुख्यतः
पांच प्रकार के खाद्य मशरूमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है:
- सफेद बटन मशरूम (White Button Mushroom)
- ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम (Oyster Mushroom)
- दूधिया मशरूम (Milky Mushroom)
- पैडीस्ट्रा मशरूम (Paddy Straw Mushroom)
- शिटाके मशरूम (Shiitake Mushroom)
इन मशरूमों की खेती से किसानों को कम लागत में उच्च मुनाफा प्राप्त हो सकता
है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है।
सफेद बटन मशरूम
पहले, भारत में सफेद बटन मशरूम की खेती केवल निम्न तापमान वाले स्थानों पर की
जाती थी, लेकिन नई तकनीकों के माध्यम से अब इसकी खेती अन्य क्षेत्रों में भी
संभव हो गई है। सरकार इस खेती को प्रोत्साहित कर रही है। अधिकतर सफेद बटन
मशरूम की एस-11, टीएम-79 और होर्स्ट यू-3 किस्में उगाई जाती हैं। इसके कवक
जाल के फैलाव के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है और
इसके बाद 14-18 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। यह हवादार कमरे,
शेड, हट या झोपड़ी में उगाया जा सकता है।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम
ढींगरी मशरूम की खेती पूरे साल की जा सकती है। इसके लिए 20-30 डिग्री
सेंटीग्रेट तापमान और 70-90 प्रतिशत सापेक्षित आद्रता आवश्यक होती है। इसके
उगाने में गेहूं और धान के भूसे और दानों का उपयोग होता है। यह मशरूम 2.5 से
3 महीने में तैयार हो जाता है और वर्तमान में पूरे भारत में उगाया जाता है।
इसका उत्पादन 10 कुंतल करने के लिए 50,000 रुपये की लागत आती है और 100
वर्गफीट के कमरे में रैक लगानी होती है। ऑयस्टर मशरूम की कीमत 120 रुपये से
लेकर 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है, जो उत्पाद की गुणवत्ता पर
निर्भर करती है।
दूधिया मशरूम
दूधिया मशरूम को ग्रीष्मकालीन मशरूम के रूप में जाना जाता है। इसका आकार बड़ा
और आकर्षक होता है। इसकी कृत्रिम खेती की शुरुआत 1976 में पश्चिम बंगाल में
हुई थी। अब यह कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में लोकप्रिय है।
मार्च से अक्टूबर तक की जलवायु स्थिति इसके लिए उपयुक्त होती है। हालांकि,
कुछ राज्यों में पैडीस्ट्रा मशरूम की वरीयता के कारण इसका व्यवसायीकरण नहीं
हो पाया है। लेकिन इसे लोकप्रिय बनाने के प्रयास जारी हैं।
पैडीस्ट्रा मशरूम
पैडीस्ट्रा मशरूम, जिसे 'गर्म मशरूम' भी कहा जाता है, उच्च तापमान पर तेजी से
बढ़ता है। इसका फसल चक्र 3-4 सप्ताह में पूरा होता है। यह स्वाद, सुगंध,
नाजुकता, प्रोटीन और विटामिन से भरपूर होता है। इसे उड़ीसा, पश्चिम बंगाल,
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड और छत्तीसगढ़ में उगाया जाता है। इसके लिए
28-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 60-70 प्रतिशत सापेक्षित आद्रता की आवश्यकता
होती है।
शिटाके मशरूम
शिटाके मशरूम एक महत्वपूर्ण खाद्य और औषधीय मशरूम है। इसे व्यावसायिक और
घरेलू उपयोग के लिए आसानी से उगाया जा सकता है। यह कुल मशरूम उत्पादन में
दूसरे स्थान पर आता है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और विटामिन (विशेष
रूप से विटामिन बी) होते हैं। यह वसा और शर्करा रहित होता है, इसलिए मधुमेह
और हृदय रोगियों के लिए उत्तम है। इसे सागवान, साल और भारतीय किन्नू वृक्ष की
ठोस भूसी पर उगाया जा सकता है।
सफेद बटन मशरूम उत्पादन की प्रौद्योगिकी
उत्तरी भारत में सफेद बटन मशरूम की मौसमी खेती के लिए अक्तूबर से मार्च तक का
समय उपयुक्त होता है। इस अवधि में दो फसलें ली जा सकती हैं। बटन मशरूम की
खेती के लिए 15-22 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान और 80-90 प्रतिशत सापेक्षित
आद्रता आवश्यक होती है।
मशरूम उत्पादन के लिए सेड/झोपड़ी/हट तैयार करना
सफेद बटन मशरूम की खेती के लिए स्थाई और अस्थाई दोनों प्रकार के शेड का उपयोग
किया जा सकता है। धन की कमी वाले किसान बांस और धान की पुआल से बने अस्थाई
शेड/झोपड़ी का प्रयोग कर सकते हैं। बांस और धान की पराली से 30×22×12 फीट
आकार के शेड/झोपड़ी बनाने का खर्च लगभग 30,000 रुपये आता है, जिसमें मशरूम
उगाने के लिए 4×25 फीट आकार के 12 से 16 स्लैब तैयार की जा सकती हैं।
कम्पोस्ट बनाने की विधि
सफेद बटन मशरूम की खेती के लिए कम्पोस्ट तैयार करने की दो विधियां प्रचलित
हैं:
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लघु विधि:
- बड़े फार्मों पर प्रयुक्त होती है।
-
10 दिनों बाद कम्पोस्ट को निर्जीवीकरण चैम्बर (टनल) में भर दिया जाता
है।
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चैम्बर का फर्श जालीदार होता है और ब्लोअर (पंखा) द्वारा हवा प्रवाहित
की जाती है।
- हवा को 6-7 दिनों तक घुमाया जाता है।
- उत्पादन क्षमता दीर्घ विधि से दुगनी होती है।
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दीर्घ विधि:
- छोटे किसानों के लिए उपयुक्त।
- तीन चरणों में कम्पोस्ट तैयार किया जाता है।
दीर्घ अवधि से कम्पोस्ट (खाद) तैयार करने की विधि
कम्पोस्ट बनाने के लिए निम्नलिखित फॉर्मूले विकसित किए गए हैं:
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फॉर्मूला 1:
- गेहूं का भूसा: 300 किग्रा
- गेहूं की चोकर: 30 किग्रा
- जिप्सम: 30 किग्रा
- किसान खाद: 9 किग्रा
- यूरिया: 3.6 किग्रा
- पोटाश: 3 किग्रा
- सिंगल सुपर फास्फेट: 3 किग्रा
- शीरा: 5 किग्रा
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फॉर्मूला 2:
- गेहूं का भूसा: 300 किग्रा
- मुर्गी खाद: 60 किग्रा
- गेहूं का छानस: 7.5 किग्रा
- जिप्सम: 30 किग्रा
- किसान खाद: 6 किग्रा
- यूरिया: 2 किग्रा
- पोटाश: 2.9 किग्रा
- सिंगल सुपर फास्फेट: 2.9 किग्रा
- शीरा: 5 किग्रा
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फॉर्मूला 3:
- सरसों का भूसा: 300 किग्रा
- मुर्गी खाद: 60 किग्रा
- गेहूं का छानस: 8 किग्रा
- जिप्सम: 20 किग्रा
- यूरिया: 4 किग्रा
- सुपर फास्फेट: 2 किग्रा
- शीरा: 5 किग्रा
कम्पोस्ट बनाने की समय सूची
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0-दिन:
- भूसे को पक्के फर्श पर फैलाकर दो दिन तक पानी से गीला करें।
- गीले भूसे में रसायन उर्वरक मिलाएं और ढेर बनाएं।
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6वें दिन (पहली पलटाई):
- ढेर की पलटाई करें और बाहरी हिस्से पर पानी का छिड़काव करें।
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10वें दिन (दूसरी पलटाई):
- खाद में शीरा मिलाएं और पलटाई करें।
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13वें दिन (तीसरी पलटाई):
- जिप्सम मिलाएं और पलटाई करें।
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16वें दिन (चौथी पलटाई):
- खाद की पलटाई करें और नमी की उचित मात्रा बनाए रखें।
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19वें, 22वें, और 25वें दिन (पांचवीं, छठी और सातवीं पलटाई):
- ढेर की पलटाई करें और नमी की उचित मात्रा बनाए रखें।
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28वें दिन:
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खाद का परीक्षण करें। अमोनिया गैस और नमी की जांच करें। यदि सब कुछ सही
है, तो खाद बीजाई के लिए तैयार है।
बीजाई से पहले खाद का परीक्षण
खाद को मुट्ठी में दबाकर देखें। पानी की बूंदें निकलनी चाहिए, लेकिन धार
नहीं।
अगर खाद में अमोनिया की गंध है, तो हर तीसरे दिन पलटाई करें।
खाद तैयार होने पर इसे ठंडा होने के लिए खोल दें।
अच्छी मशरूम खाद की पहचान
- रंग: तैयार कम्पोस्ट गहरे भूरे रंग की होनी चाहिए।
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नमी: खाद में नमी की मात्रा 60-65 प्रतिशत होनी चाहिए।
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नाइट्रोजन: खाद में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 1.75-2.25
प्रतिशत होनी चाहिए।
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अमोनिया: खाद अमोनिया गैस की बदबू रहित होनी चाहिए।
- स्वास्थ्य: खाद कीट एवं रोगाणु रहित होनी चाहिए।
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पीएच मान: खाद का पीएच मान 7.2-7.8 के बीच होना चाहिए।
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स्पॉन (मशरूम का बीज) कहां से प्राप्त करें
मशरूम की खेती में प्रयोग होने वाले बीज को स्पॉन कहते हैं। अधिक पैदावार के
लिए शुद्ध और अच्छी किस्म का स्पॉन आवश्यक है। निम्नलिखित प्रयोगशालाओं से
उन्नति किस्म के स्पॉन प्राप्त किए जा सकते हैं:
- खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश
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डॉ यशवंत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश
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पादप रोग विज्ञान विभाग, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा
- बागवानी निदेशालय, मशरूम स्पॉन प्रयोगशाला, कोहिमा
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सरकारी स्पॉन उत्पादन प्रयोगशाला, बागवानी परिसर, चाउनी कलां, होशियारपुर,
पंजाब
- विज्ञान समिति, उदयपुर, राजस्थान
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क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, सीएसआईआर, श्रीनगर, जम्मू एवं कश्मीर
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पादप रोग विज्ञान विभाग, जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्य
प्रदेश
- पादप रोग विज्ञान विभाग, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट, असम
मशरूम की बीजाई (स्पॉनिंग)
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स्लैब या बेड तैयार करना: तैयार की गई सेड/झोपड़ी में
स्लैबों या बेडों पर पॉलिथीन शीट बिछाएं और 6-8 इंच मोटी कम्पोस्ट की परत
बिछाएं।
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स्पॉन मिलाना: कम्पोस्ट के ऊपर मशरूम के बीज (स्पॉन) को
मिलाएं। 100 किलोग्राम कम्पोस्ट के लिए 500-750 ग्राम बीज पर्याप्त है।
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ढकना: स्पॉन की बीजाई के बाद कम्पोस्ट को पॉलिथीन शीट से
ढक दें।
बीज रखने में सावधानियां
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तापमान: 40 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक तापमान पर बीज
48 घंटे में मर सकता है। गर्मियों में बीज को रात्रि में लाएं।
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संग्रहण: बीज को थर्मोकोल के डिब्बे में बर्फ के टुकड़ों
के साथ रखें। वातानुकूल वाहन का उपयोग करें।
बीज का भण्डारण
ताजा बीज कम्पोस्ट में जल्दी फैलता है और पैदावार बढ़ाता है। अगर भण्डारण
करना आवश्यक हो, तो बीज को 15-20 दिन के लिए रेफ्रीजरेटर में रखा जा सकता है।
केसिंग मिश्रण
केसिंग के लिए उपयुक्त मिश्रण में पानी को शीघ्र अवशोषित करने और धीरे-धीरे
छोड़ने की क्षमता होनी चाहिए। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय,
हिसार के अनुसंधान के अनुसार, चावल के छिलके की राख और जोहड़ की मिट्टी को
1:1 भार के अनुपात में मिलाकर एक उच्च गुणवत्ता वाला केसिंग मिश्रण तैयार
किया जा सकता है।
केसिंग मिश्रण का निर्जीवीकरण
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फॉर्मलीन का उपयोग: 2-3 प्रतिशत फॉर्मलीन के घोल से
मिश्रण को तर करें।
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पॉलिथीन से ढकना: मिश्रण को पॉलिथीन शीट से 3-4 दिन के
लिए ढक दें।
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गंध निकालना: पॉलिथीन शीट हटाकर मिश्रण को पलटें, ताकि
फॉर्मलीन की गंध निकल जाए।
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परत बिछाना: जब स्पॉन का कवकजाल पूरी तरह से स्थापित हो
जाए, तो उसके ऊपर 1.0-1.5 इंच मोटी केसिंग की परत बिछाएं।
केसिंग मशरूम की वानस्पतिक वृद्धि में सहायक होती है और खाद में नमी बनाए
रखती है। केसिंग न करने से मशरूम की पैदावार कम हो सकती है, जिससे आर्थिक
हानि होती है।
हवा का संचालन
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कवकजाल फैलने के दौरान: एक या दो बार शुद्ध हवा देना
आवश्यक है। कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा 2 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी
चाहिए।
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पिन हेड बनने के समय: कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा 0.08
प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
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मशरूम निकलते समय: कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा 0.08-0.1
प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
पिन बनने के समय और बाद में हवा का संचालन अच्छी प्रकार से होना चाहिए। इससे
मशरूम की गुणवत्ता और उत्पादन बेहतर होता है।
फ्रूटिंग और तुड़ाई
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केसिंग के बाद: केसिंग की परत चढ़ाने के 12-15 दिन बाद
छोटी-छोटी मशरूम कलिकाएं दिखाई देने लगती हैं।
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परिपक्वता: 4-5 दिन में ये कलिकाएं विकसित होकर 4-5
सेंटीमीटर के श्वेत बटन मशरूम में परिवर्तित हो जाती हैं।
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तुड़ाई: परिपक्व मशरूम को थोड़ा सा घुमाकर तोड़ लें।
तुड़ाई के बाद शीघ्र ही उपयोग में लें, क्योंकि मशरूम जल्दी खराब हो जाते
हैं।
प्रत्येक 10 किलोग्राम सूखे भूसे से बनी कम्पोस्ट खाद से लगभग 5 किलोग्राम
श्वेत बटन मशरूम प्राप्त की जा सकती है।